मौत को दे दी मात… मगर दर्द और झूठी खबरों से कराह रहे कोरोमंडल ट्रेन के पायलट

"मौत को दे दी मात... मगर दर्द और झूठी खबरों से कराह रहे कोरोमंडल ट्रेन के पायलट"

बालासोर. कोरोमंडल एक्सप्रेस को चलाने वाले 36 वर्षीय सहायक लोको पायलट हजारी बेहरा 2 जून को ओडिशा के बालासोर जिले में हुई घातक ट्रेन दुर्घटना में मौत के मुंह में जाने से बाल-बाल बच गए. वर्तमान में बेहरा भुवनेश्वर के एएमआरआई अस्पताल में भर्ती हैं. बीते शुक्रवार की शाम लगभग सात बजे शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन के पटरी से उतरने और एक मालगाड़ी से टकराने से यह भीषण हादसा हुआ था, जिसमें 275 लोगों की मौत हो गई, जबकि 1100  जख्मी हुए.

हादसे के बाद पायलट का परिवार इस बात से परेशान था कि स्थानीय मीडिया उसकी कथित मौत के बारे में फर्जी खबरें चला रहा है. बेहरा की पत्नी ने द हिंदू को बताया, ‘मीडिया को इस बात का एहसास नहीं है कि इस तरह की झूठी खबरें घायलों के परिवार पर भारी पड़ सकती हैं. खासकर जब मेरे पति अभी भी कमजोर हैं और सीधे बैठने में असमर्थ हैं.’ हादसे के बाद बेहरा के बाएं पैर में फ्रैक्चर है और कई खरोंच हैं. हालांकि, वह फिलहाल पूरी तरह से होश में है, लेकिन उनका स्वास्थ्य कमजोर है.

उनके सहयोगी, कोरोमंडल एक्सप्रेस के लोको पायलट गुणनिधि मोहंती की हालत भी अब स्थिर है और उन्हें सोमवार को ही उसी अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) से बाहर लाया गया है. दोनों ट्रेन चालकों के परिवारों ने सभी से उनकी निजता का सम्मान करने की अपील की है और उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होने देने का अनुरोध किया है. उन्होंने दावा किया कि दोनों ट्रेन चालकों को दुर्घटना के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि वे रेल नियमों के अनुसार ट्रेन चला रहे थे.

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘द हिंदू’ को बताया कि लोको पायलट के काम में ट्रेन को स्टार्ट करना, रोकना और उसे गति देना शामिल है. उन्होंने कहा, ‘कोई सवाल ही नहीं उठता है कि 128 किलोमीटर प्रति घंटे की हाईस्पीड पर, वह भी रात के अंधेरे में, लोको पायलट ने देखा होगा कि यह एक मालगाड़ी से टकराने वाला था, खासकर जब मुख्य लाइन पर आगे बढ़ने के लिए उसे हरी झंडी मिल गई थी.’

रेलवे ने भी रविवार को अपने एक बयान में कहा था कि ओडिशा के बालासोर जिले में दुर्घटना की शिकार हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन की ‘रफ्तार निर्धारित गति से तेज नहीं थी’ और उसे ‘लूप लाइन’ में दाखिल होने के लिए ‘ग्रीन सिग्नल’ मिला था. रेलवे के इस बयान को ट्रेन चालक के लिए एक तरह से ‘क्लीन चिट’ के तौर पर देखा जा रहा है.

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